Wednesday 23 November 2022

आंदोलन

 

आंदोलन

करावं का न करावं

होकारावं का नाकारावं

कळवावं का कळु द्यावं

 विचारावं का थांबावं

सांगावं का लपवावं

आता केलच आहे------- तर काय करावं?

बहरावं का बाहेर पडावं

आवरावं का पसरवावं

वहावत जावं का थांबावं

रुसावं का बोलावं

सजावं की राबावं

मागवावं का रांधावं

भुणभुणावं का रुणझुणावं

फुलावं का कोमेजावं

झगडावं का हळहळावं

हसावं का रडावं

ताणावं का जाणावं

रागवावं का सोडून द्यावं

जिरवावं का सावरावं

सोसावं का बरसावं

मांडावं का मोडावं

जोडावं का तोडावं

सुटावं का सोडवावं

लटकत रहावं  का सुटावं

जावं का रहावं

आता तरी काहीतरी सुचाऽऽवं ----

नाहीतर कोणीतरी सुचवावंऽऽ

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अशी विचारांच्या हिंदोळ्यावर हो नाही झुलत,

वर्षनु--- वर्ष निघून जातात.

 झाडावर झुलणार्‍या चिंचेच्या आकड्याप्रमाणे

लग्नवेलीवर अनेक संसार लटकत राहतात---

गाभुळतात, पिकतात, न तुटता झुलत राहतात

खालून जाणारे  मात्र तोंडाला पाणी सुटून

नेम धरून मारण्यासाठी दगड उचलतात

अचानक अडखळतात.

नेम बसेल का हुकेल?

 अलिकडे पडेल का पलिकडे पडेल?

मिळेल का न मिळेल

घडेल का बिघडेल

दात आंबेल का रुचेल

पचेल का  खोकला मागे लावेल

टिकेल का नासेल

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अशा हिंदोळ्यावर आंदोळत राहतात.

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हिंदोळा झुलतच राहतो.

चिंचेचा आकडा झाडावरच हसत राहतो.

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लेखणी  अरुंधतीची -

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